एक अर्से से जज़्बात-ओ-एहसास की वादी-ए-इश्क़ की बस्ती नए पुराने सभी मकान तमन्नाओं के खुली छतें अहद-ओ-पैमाँ की बंद झरोके के आरज़ूओं के नीम-शिकस्ता दीवार-ओ-दर अरमानों के उम्मीदों के ऊँचे नीचे लम्बे चौड़े गीले और पथरीले रस्ते राहत के अश्जार सुकूँ की दूब तरब की ख़ुद-रौ बेलें रंग-बिरंगी सोच के फूलों की शतरंजी महरूमी की ऊँची चोटी तन्हाई की जान-लेवा ढलवान दुखों की सख़्त चट्टानें दर्द की खाई सब पर यास की बर्फ़ जमी थी चारों जानिब ठंडी और बे-जान सफ़ेदी फैल रही थी जीवन क्या था एक कफ़न था जिस के अंदर ख़ुद को अपने यख़-बस्ता सीने से लगाए मैं इक ज़िंदा लाश की सूरत पड़ा हुआ था दिल के वीराने में कुछ बे-चेहरा लम्हे आसेबी सायों की सूरत काँप रहे थे हाँप रहे थे आज अचानक एक परी-चेहरा मेरे चेहरे से बे-रंग कफ़न सरका कर मेरे कान में सरगोशी की मेरी आँख में झाँक कर बोली उठ और देख तिरे दिल की बे-ख़बर धड़कन में कितना प्यारा कितना दिल-आवेज़ सियाह गुलाब खिला है