ये लम्हा जो गुज़र रहा है और वक़्त जो बीत रहा है यही अज़ल है यही अबद है यही अभी है यही सदा है उम्र-ए-गुज़िश्ता इक धोका है गहरा धोका आते जाते सारे मौसम इक मौसम का आईना हैं ज़ाहिर है बातिन की जानिब मंज़र से पस-मंज़र को जो रस्ता है उस के आगे और पीछे की सब आवाज़ें बे-मा'नी हैं