बात हमारी ग़ौर से सुनना सुन कर जग से कह देना इस धरती से अम्बर तक झरने झील से सागर तक मैदानों के दामन से ऊँचे पर्बत के सर तक भूत है क्या जिन्नात है क्या ज़ालिम काली रात है क्या हम हैं आदम की औलाद शैताँ की औक़ात है क्या बस्ती बस्ती जंगल है और जंगल में जंगल है ख़तरों से घबराना क्या जीवन ख़ुद इक दंगल है घर से बाहर डर को करो सुख से जियो और सुख से मरो बोल हमारे हैं अच्छे ना नज़्म का मतलब समझे ना