उफ़ ये पिछले पहर का सन्नाटा ज़ेहन पर डंक मारता जाए एक इक ज़ख़्म उभारता जाए भूला-बिसरा हुआ सा इक चेहरा मेरे अश्कों में डूब कर निकला और मेरे लरज़ते होंटों पर सज गया एक आह की सूरत ऐसी लम्बी कराह की सूरत चीर कर दिल को जो निकलती है बे-रियाई ख़ुलूस लुत्फ़-ओ-करम ख़ुश-दिली मेहरबानियाँ शफ़क़त हुस्न-ए-शबनम-मिज़ाजियाँ निकहत ज़िंदगी का सलीक़ा-ए-मुसबत आगही अक़्ल इल्मियत तहज़ीब दिल-नशीं दूर-बीनी दीदा-वरी शेरियत का शुऊ'र ख़ुश-नज़री रंग आता है रंग जाता है और वो भूला-बिसरा सा चेहरा चोट दिल पर मिरे लगाता है बढ़ती जाती है ज़ख़्मों की तादाद बढ़ता जाता है दर्द सीने का हौसला अब नहीं है जीने का याद-ए-माज़ी अज़ाब है यारब