हिन्द में सैकड़ों पैदा हुए यूँ तो रहबर कौन सानी है तिरा कौन है तेरा हम-सर जब भी तारीख़ के सफ़्हात उलट कर देखे सिर्फ़ नेज़ों पे सजे हम ने वहाँ सर देखे कोई इंसान की अज़्मत का परस्तार नहीं कोई भी जिंस-ए-मोहब्बत का ख़रीदार नहीं हाँ मगर तुझ पे नज़र आ के ठहर जाती है तेरे हर लफ़्ज़ से इख़्लास की बू आती है तू मुवह्हिद है कि रहमत है तिरी फ़िक्र-ओ-नज़र जिस का पंजाब पे साया है वही तू है शजर मेहर-ए-अख़्लाक़ से उतरा तू उजाला बन कर अर्ज़-ए-पंजाब की क़िस्मत का सितारा बन कर क़ल्ब-ए-इंसाँ को मोहब्बत का ख़ज़ाना बख़्शा नुत्क़-ए-रंजीदा को ख़ुशियों का तराना बख़्शा क़स्र-ए-तौहीद का इक बुर्ज-ए-मुनव्वर तू है गुलशन-ए-हक़ के लिए बू-ए-गुल-ए-तर तू है तेरे पैग़ाम से हर पीर-ओ-जवाँ वाक़िफ़ है एक पंजाब ही क्या सारा जहाँ वाक़िफ़ है