नींद का फ़रिश्ता By Nazm << काग़ज़ी है पैरहन माएका >> ज़मीं अतराफ़ की काली हुई जलने लगे देवे हवाएँ ख़ुश्क पत्तों को गिरा कर सो गईं शायद फ़रिश्ता नींद का नाराज़ है मुझ से ये कहता है बहुत दिन सो लिए बेदार रह कर भी ज़रा देखो अज़ान-ए-फ़ज्र होने तक सितारों की अदा देखो Share on: