निन्दिया आई दूर से By बाल कविता, Nazm << सहाफ़ी से हसन कूज़ा-गर (4) >> इक झील के किनारे सहमे हुए थे तारे जुगनू चमक रहे थे झम झम झमक रहे थे इक अक्स खो गया था वो बच्चा सो गया था अम्मी की लोरियों में रेशम की डोरियों में जब नींद आ रही थी चुप-चाप गा रही थी रेशम के पालने में पेंगें उछालने में Share on: