हवा के हाथों में हाथ दे कर जुदाइयों के सफ़र पे निकले थे तुम मगर क्यूँ रुके हुए हो यक़ीन-ए-ख़ुफ़्ता गुमान-ए-पुख़्ता के पानियों पर जहाँ पे अव्वल मोहब्बतों के कँवल खिले थे अभी वहीं हो! जुदाइयों के सफ़र पे जा कर भी अब तलक तुम गए नहीं हो! चले भी जाओ चले भी जाओ कि गुम-शुदा ज़ात के ख़ज़ीने की कुंजियाँ ढूँडनी हैं मैं ने सुकूत-ए-सौत-ओ-सदा के पर्दे में तर्ज़-ए-गुफ़्तार सीखनी है निकल के मौजूदा वक़्त के बे-दरीचा बे-दर हवेलियों से मुझे मुलाक़ात सोचनी है बहुत सी बे-नाम ग़ैर महदूद साअतों की सहेलियों से चले भी जाओ बस इस से पहले कि मोम-लम्हा पिघल ही जाए कि जब्र आग़ाज़ हो शबों का कि सोच रस्ता बदल ही जाए चले भी जाओ