वक़्त की ज़ंजीर तो कट नहीं सकती मगर खोल घड़ी दो घड़ी क़ुफ़्ल दर-ए-ज़ात का आईना-ए-ज़ब्त को संग-तमन्ना से तोड़ और ख़ुशी से बहा दिल में रुका सैल-ए-दर्द सोच ज़रा देर को गोश्त के मल्बूस में पिंजरा हैं ये पिसलियाँ जिस के अजब सेहर में क़ैद तिरी रूह का ताएर-ए-ख़ुश-रंग है आँख उठा कर तो देख बाज़ू कुशादा किए वो शजर-ए-शश-जिहत कितने ज़मानों से है सिर्फ़ तिरा मुंतज़िर ताएर-ए-ख़ुश-रंग की हमराही-ए-शौक़ में पिंजरे समेत उड़ ज़रा हैरत ओ इम्कान की वादी-ए-ना-मुख़्ततिम लम्हा-ए-ला की तरफ़