बीस बरस वो पुरानी शर्ट निकली है अलमारी से मैं ने तह कर के उस को अलमारी के सब से ऊपर वाले ख़ाने में रक्खा था जैसे मेरी बूढ़ी माँ क़ुरआन को चूम के रखती थी तेरी यादों के परफ़्यूम के धब्बे पड़े हैं अब तक और मैं छू कर देखूँ तो ख़ुशबू भी अब तक गई नहीं है वक़्त इस शर्ट की आस्तीन का घुसा हुआ है बस मैं आख़िरी बार जो तेरा टिकट लिया था जेब में अब तक पड़ा हुआ है तू ने आख़िरी बार बटन टाँका था इस में याद है जानाँ दाँत से धागा तोड़ के कैसे सोई चुभोई थी सीने में उस की टीसें आज भी मेरे दिल में रह रह कर उठती हैं सब कुछ इतना ही ताज़ा है मैं ने शर्ट सँभाल के रक्खी वक़्त को मैं ने रोक के रक्खा सब कुछ वैसे का वैसा है लेकिन जानाँ ये तो बता तू शर्ट के कॉलर पर जो तेरी काली ज़ुल्फ़ का बाल टिका था उस पर सफ़ेदी कैसे आई