आओ बच्चो सामने बैठो क़िस्सा एक सुनाऊँ तुम को जंगल में इक भूक का मारा लकड़ी लाने गया बेचारा जंगल में थी नद्दी गहरी गिर गई बेचारे की कुल्हाड़ी क्या करूँ दिल में सोच रहा था इतने में इक आदमी आया कहने लगा क्यूँ तुम हो फ़सुर्दा कुछ तो बताओ क्या है सदमा बोला वो मैं क्या कहूँ भाई मैं ने कुल्हाड़ी अपनी गँवाई इस नद्दी ही में वो पड़ी है हालत मेरी आह बुरी है नद्दी में तब कूद गया वो कैसा बहादुर इंसाँ था वो मिल गई नद्दी में वो कुल्हाड़ी ग़ोता मारा और निकाली देखा तो वो सोने की थी पूछा क्या है यही तुम्हारी बोला ये नहीं मेरी भाई डुबकी उस ने और लगाई अब लोहे की उस ने निकाली फिर पूछा क्या ये है तुम्हारी देख के ये ख़ुश हो गया उस को और कहा हाँ यही थी देखो ले कर ख़ुश-ख़ुश घर को सिधारा कितना सच्चा था बेचारा देख के सोने की वो कुल्हाड़ी उस की निय्यत ज़रा न बदली जी में अगर लालच कुछ होता सोने की हरगिज़ न वो खोता बुरा है लालच सच है अच्छा 'जौहर' का भी यही है कहना