रात में भी गया इक नुमाइश थी उम्दा तसावीर की शहर के चीदा चीदा मुअज़्ज़िज़ ख़वातीन-ओ-हज़रात चेहरों पे मौज़ूँ मिलावट नफ़ासत की संजीदगी की फ़ुनून-ए-लतीफ़ा के इदराक की अपनी मौजूदगी से यक़ीं दूसरों को दिलाते हुए कितने बा-ज़ौक़ हैं काश ख़ुद भी यक़ीं कर सकें रात अच्छी नुमाइश थी मैं भी नुमाइश में तस्वीर था