ऑक्टोपस By Nazm << सफ़र बे-सम्त ना-रसा >> ख़्वाहिश का इक समुंदर मेरे दिल में दूर तक अपनी जड़ें फैलाए मुझ को अपने घेरे में लिए अपनी मौजों के सहारे चूस लेना चाहता है सब लहू ग़ालिबन इक ऑक्टोपस के घने पंजों की ज़द में हूँ मैं 'आदिल' Share on: