सफ़र बे-सम्त By Nazm << सफ़र पर सफ़र ऑक्टोपस >> ज़मीं से आसमाँ के दरमियाँ बे-सम्त राहों में मिरे शहपर सदा पर्वाज़ करते हैं कहाँ पर्वाज़ पर कोई मिरी क़दग़न लगाता है और उन आँखों में मंज़िल ही मिरी कब मुस्कुराती है Share on: