पहचान By Nazm << शोर-ए-दरूँ अँधेरा ही अँधेरा है >> हादसों में कोई शख़्स नहीं मरता लोग मरते हैं भीड़ मरती है और भीड़ की कोई पहचान नहीं होती उन सितारों की तरह रात जो सितारा ज़ियादा चमके तुम समझना मैं वही हूँ Share on: