पैग़ाम हवा लाई है न जाने किधर से पत्तों पे उभर आई है तहरीर किधर से जो देखी है लाई है वो तस्वीर किधर से इक राह पे वो आया है इक लम्बे सफ़र से महमिल में वो बे-ख़्वाब है आलम की ख़बर से क्या देखिए! क्या शक्ल हुई ज़ेर-ओ-ज़बर से इक वस्ल के मौसम में जहाँ जाग उठा है घर-बार ज़मीं कौन-ओ-मकाँ जाग उठा है ख़ुश हो के वो आज़ुर्दा-ए-जाँ जाग उठा है क्या वक़्त की दहलीज़ पे दस्तक है किसी की? सोई हुई दुनिया को सहर ढूँड रही है इस दौर को इक अच्छी ख़बर ढूँड रही है