फ़राग़त के ख़ुनुक मौसम में दिल की नीम-तारीकी में बैठा हूँ अकेले-पन की बे-आराम कुर्सी पर मैं बे-हंगाम झूले ले रहा हूँ और कई घंटों से मैं ने इक शिकन-आलूद बिस्तर की गवाही ओढ़ रक्खी है किताब-ए-उम्र के कुछ बाब पढ़ कर थक गया था मैं अभी वहशत के क़हवे से ज़रा तस्कीन पाई है