पेचदार पहाड़ों पर चढ़ते रास्ते हाँपने लगे पेशानी पर झिलमिलाते आब्दार मोती पोछे नीचे वादियों में देखा बादलों के लहराते आँचल ओढ़े मख़मूर गुनगुनाती मुस्कुराती पहाड़ों के क़दम चूमती वादियों की आग़ोश में मचलती सब्ज़ा-ज़ारों से अटखेलियाँ करती नशे में झूमती आबशारों को गले लगाती पैग़ाम-ए-आश्ती देती नशेब की जानिब बढ़ती नदी