पानी से हुवैदा होती है दुनिया में ख़ुदा की रहमत भी पानी में दिखाई देती है तस्वीर-ए-अज़ाब-ओ-ला'नत भी पानी की बदौलत मिलती है इंसाँ को ग़िज़ा की ने'मत भी सैलाब की सूरत में पानी लाता है जहाँ पर आफ़त भी इक झील के गहरे पानी पर इस वक़्त जमी है मेरी नज़र अफ़्कार हैं डाँवा-डोल मिरे जज़्बात हैं मेरे ज़ेर-ओ-ज़बर मैं ख़ुशी ख़ुशी उतरूँ इस में और सत्ह पे तैरूँ हँस हँस कर या डूब के इस की लहरों में पा जाऊँ ग़म-ए-हस्ती से मफ़र