पानी पर इक तस्वीर हमारी उभरी थी इक तस्वीर ज़माने की और कभी ये तस्वीरें आपस में गडमड हो जातीं इक दूजे में घुल-मिल जातीं फिर से जुदा हो जाती थीं पानी के इक क़तरे ने इन आँखों में देखो कैसा खेल रचाया जाने कैसा पानी था उस पानी पर बहते कैसे कैसे बाज़ार लगे थे कैसी कैसी तस्वीरें जाने कौन था हम अपने कुर्ते के दामन से किस के आँसू पोंछ रहे थे फिर इक लहर उठी सारा बाज़ार इस बाज़ार में, हम दोनों गहरे पानी में डूब रहे थे