अब मिरे जिस्म पे रुस्वाई का पैराहन है तुम उसे चाक नहीं कर सकते मेरे वीरानों को देखोगे तो डर जाओगे कौन था दार-ओ-रसन पर तुम्हें मालूम नहीं कौन संगसार हुआ कौन चढ़ा सूली पर किस के हाथों ने उठाया तेशा खाल खिंचवाई गई थी किस की तुम उसे जान न पाओगे कभी कि अभी लज़्ज़त-ए-रुस्वाई से महरूम हो तुम ज़ख़्म खाने की अभी ताब नहीं है तुम में