दरख़्तों पे हर दम चहकते परिंदे लुभाते हैं बच्चो रंगीले परिंदे हैं दिलकश वो रंगीन चिड़ियों की डारें दिखाती हैं पत-झड़ में भी ये बहारें झपटती हैं मुर्दार पर ख़ुद ही चीलें सुहानी हैं बगलों की हलचल सी झीलें है लक़वे से करता कबूतर हिफ़ाज़त है तीतर से आती रगों में हरारत ज़रूरत पे करते हैं नक़्ल-ए-मकानी ये आदत परिंदों की है इक पुरानी ग़िज़ा मिल के खाते हैं कव्वे भी देखो सबक़ एकता का परिंदों से सीखो तुम इस राज़ को आज 'हाफ़िज़' से जानो परिंदे ग़िज़ा भी दवा भी हैं बच्चो