कल रात बारिश से जिस्म और आँसुओं से चेहरा भीग रहा था उस के ग़म की पर्दा-दारी शायद ख़ुदा भी करना चाहता था लेकिन धूप निकलने के ब'अद जिस्म तो सूख गया लेकिन आँखों ने क़ुदरत का कहना मानने से भी इंकार कर दिया उस के उदास होंट पत्थर के हो गए थे और पत्थर मुस्कुरा नहीं सकते