बुलबुलों के महल By Nazm << सेंसर्शिप पत्थर के होंट >> क़ैद हैं जिन में शाम-ओ-सहर जिस ने रक्खा क़दम बन गया संग-ए-दर कौन गुज़रा है इस राह से बे-ख़तर और उन से परे बादलों में घिरे कोहसारों के फैले हुए सिलसिले फ़ासले फ़ासले एक ताइर की पर्वाज़-ए-बे-जुस्तुजू एक आवाज़ भटकी हुई कू-ब-कू Share on: