मक़ाम-ए-हक़ है बिला-शक मक़ाम-ए-आज़ादी बुलंद अर्श से भी कुछ है बाम-ए-आज़ादी न हो सकेगा कभी मोहतरम जहाँ में तू जो तेरे दिल में नहीं एहतिराम-ए-आज़ादी सुना रहा है तुझे इंक़िलाब-ए-दहर जो कुछ सुन और ग़ौर से सुन वो पयाम-ए-आज़ादी कहाँ तलक ये तबाही की ज़िंदगी ग़ाफ़िल उठ और जल्द बना इक निज़ाम-ए-आज़ादी उठ और हाथ में ले तेग़-ए-बे-नियाम-ए-अमल कि है वसीला-ए-फ़ौज़-ओ-मराम-ए-आज़ादी ये ज़िंदगी है तिरी मौत से सिवा बद-तर ख़ुदा के वास्ते कर एहतिमाम-ए-आज़ादी ग़लत है ये जो ग़ुलामाना ज़ेहनियत के साथ पका रहा है तू सौदा-ए-ख़ाम-ए-आज़ादी पुकार यूँ तिरी हरगिज़ सुनी न जाएगी ज़बान-ए-तेग़ से कर बस कलाम-ए-आज़ादी वतन से ला'नत-ए-सरमाया को फ़ना कर दे जो चाहता है बक़ा-ए-दवाम-ए-आज़ादी हटा दे पर्दा-ए-तारीक जब्र-ओ-इस्तिबदाद कि नूर-बार हो माह-ए-तमाम-ए-आज़ादी