जुनून-ए-शौक़ के दम से है इज़्ज़-ओ-शान-ए-हयात यही है रूह-ए-मोहब्बत यही है जान-ए-हयात क़ियाम नाम है किस का इसे नहीं मालूम हमेशा गर्म-ए-तग-ओ-दौ है कारवान-ए-हयात ज़िया-ए-इश्क़ से क़ल्ब-ओ-निगाह रौशन हो तो ख़ुद-बख़ुद निखर आती है दास्तान-ए-हयात ग़म-ए-हयात को हँस हँस के जो उठाता है उसी को मिलता है याँ लुत्फ़-ए-जाविदान-ए-हयात जो तू सुने तो कहूँ एक बात नुक्ते की ख़ुदी से बढ़ के नहीं कोई पासबान-ए-हयात ख़ुदी से तू ने अगर रिश्ता उस्तुवार किया अजल मिटा नहीं सकती तिरा निशान-ए-हयात मिला है हज़रत-ए-इक़बाल से उसे आहंग हुआ है 'मंशा' तभी ऐसा नग़्मा-ख़्वान-ए-हयात