ज़ख़्मी तन है मन बे-कल है पिछली बातें याद आती हैं मिलते रस्ते जिन पे हम तुम हँसते गाते दौड़ रहे थे दिल में कोई ख़ौफ़ नहीं था फूल खिले थे रस्ते रस्ते बरखा कितनी अलबेली थी भोले-भाले वो सपने थे मेरी अम्मी मेरे अब्बा मेरी बहनें मेरे भय्या हम सब कितने ख़ुश ख़ुश से थे अब कुछ ऐसी बात हुई है घर भी वही है लोग वही हैं रुत भी वही है रस्ते वो ही लेकिन मैं तो बिछड़ गई हूँ