शराब-ख़ाना है बज़्म-ए-हस्ती हर एक है महव-ए-ऐश-ओ-मस्ती मआल-बीनी ओ मय-परस्ती अरे ये ज़िल्लत अरे ये पस्ती शिआर-ए-रिंदाना कर पिए जा अगर कोई तुझ को टोकता है शराब पीने से रोकता है समझ इसे होश में नहीं है ख़िरद के आग़ोश में नहीं है तू इस से झगड़ा न कर पिए जा ख़याल-ए-रोज़-ए-हिसाब कैसा सवाब कैसा अज़ाब कैसा बहिश्त ओ दोज़ख़ के ये फ़साने ख़ुदा की बातें ख़ुदा ही जाने फ़ुज़ूल सोचा न कर पिए जा नहीं जहाँ में मुदाम रहना तो किस लिए तिश्ना-काम रहना उठा उठा हाँ उठा सुबू को तमाम दुनिया की हाव हू को ग़रीक़-ए-पैमाना कर पिए जा किसी से तकरार क्या ज़रूरत फ़ुज़ूल इसरार क्या ज़रूरत कोई पिए तो उसे पिला दे अगर न माने तो मुस्कुरा दे मलाल-ए-असला न कर पिए जा तुझे समझते हैं अहल-ए-दुनिया ख़राब ख़स्ता ज़लील रुस्वा नहीं अयाँ उन पे हाल तेरा कोई नहीं हम-ख़याल तेरा किसी की परवा न कर पिए जा ये तुझ पर आवाज़े कसने वाले तमाम हैं मेरे देखे भाले नहीं मज़ाक़ उन को मय-कशी का ये ख़ून पीते हैं आदमी का तू उन का शिकवा न कर पिए जा