सुनी सुनी सी लगी है मुझ को वो सर्दियों में लिहाफ़ ओढ़े हुए कहानी कहीं अलाव के गिर्द चलते हुए वो क़िस्से सरों पे अपने अंगोछे बाँधे हुए वो क़िस्से अलाव के गिर्द जलते बुझते हुए वो क़िस्से कहीं पे शहज़ादियों के क़िस्से कहीं परिंदों की खिचड़ियों की वही कहानी वो एक चिड़ा जो खा गया था तमाम खिचड़ी कहीं नमक सी कहीं मिर्च सी कभी वो मीठी खटाई जैसी नई कहानी बहुत पुरानी सी बात है ये न अब अलाव के गिर्द मेला न चिड़िया चिड़े की वो कहानी नमक की ख़ातिर न शाहज़ादी ने दुख उठाए वो शाहज़ादा जो जंगलों में तलाश करता रहा था पानी वहीं पे उस को परी मिली थी तमाम जंगल भी कट चुके हैं सिराज अनवर के सारे जंगल कहीं नहीं हैं वो सारी परियाँ भी सो गई हैं न शहज़ादे न कोई जादू भरी कहानी कहाँ हैं नसतोर के वो क़िस्से जो हाथ अपना बढ़ा के दावात खींचता था बस अब तो वो दौर भी ख़त्म है नहीं हैं बच्चों के वो रिसाले खिलौना फुलवारी शरीर लड़का न मोटू पतलू के प्यारे क़िस्से बस अब तो ख़बरें दहाड़ती हैं