पुर्सा By Nazm << सज़ा बे-घरी >> ख़ुदा को लिखे गए ख़त में मैं ने अपने दुखों की तफ़्सील नहीं लिखी क्यूँ-कि ख़ुदा हर शय से बे-नियाज़ दुनिया की बिसात पर नित-नए खेल खेल रहा है और तन्हाई का दुख झेल रहा है Share on: