बे-घरी By Nazm << पुर्सा रंगीन वादी >> जाते क्यूँ नहीं हो ये घर मेरा नहीं है जो तुम अंदर आना चाहते हो मैं घर में रह कर भी बे-घर हूँ और तुम को यक़ीं नहीं आता बार बार मना करने के बावजूद नहीं जाना चाहते हो और मुझे इस बे-घरी में बे-घर कर देना चाहते हो Share on: