इक कव्वा था बेहद प्यासा पानी को वो ढूँड रहा था चारों ओर नज़र जो डाली धूप थी और जंगल था ख़ाली उड़ कर नीचे ऊपर देखा फिर जा ऊँची शाख़ पे बैठा चारों ओर नज़र दौड़ाई दूर इक मटका दिया दिखाई ख़ुशी ख़ुशी उस ओर को भागा उड़ कर उस जा वो जा पहुँचा मटके के अंदर जब झाँका तह में थोड़ा पानी देखा चोंच न उस की उस जा पहुँची व्याकुल हो फिर बात ये सोची मतलब तो था पानी पाना कव्वा भी था बड़ा स्याना साथ पड़े कंकर जो देखे सोचा पानी में ये फेंके चोंच से इक इक कंकर पकड़ा मटके में फिर उस को डाला धीरे धीरे पानी उभरा मटके की गर्दन तक पहुँचा कव्वे ने फिर चोंच बढ़ाई और पानी से प्यास बुझाई प्यारे प्यारे अच्छे बच्चो कव्वे की तुम बात को सोचो मेहनत से तुम जी न चुराओ मेहनत करके तुम फल पाओ जिस ने ढूँडा उस ने पाया जिस ने बोया उस ने खाया ऐसा किसी का सच्चा बयाँ है चाह जहाँ है राह वहाँ है