हर नज़्म दुनिया की ख़ूब-सूरती में इज़ाफ़ा करती है हर पैदा होने वाली बच्ची की तरह मगर हम अपनी ज़िंदगी दौर-ए-जाहिलिय्यत में जी रहे हैं जो समझ नहीं आतीं उन नज़्मों को ज़िंदा दरगोर कर देते हैं और हमें वो पैग़म्बर भी नहीं मिलता कि जिस के सामने अपने गुनाह का ए'तिराफ़ करें और उस की दाढ़ी भिगो दें कल एक नज़्म हुई लेकिन पोस्ट करते ही हटा ली मैं ने जाने क्यों