रात आई है हज़ारों दुख लिए वक़्त के बे-रहम क़दमों के तले फूल रौंदे जा चुके हैं ख़्वाब के ज़ख़्म ताज़ा हैं दिल-ए-बेताब के रौशनी बढ़ने लगी दिन आ गया दिन के होंटों पर कोई मंतर है क्या एक रौनक़ लग गई है शहर में हम भी शामिल हो गए इस लहर में भूल कर अज़ली दुखों के सिलसिले दिल में जीने के हैं ताज़ा वलवले