टीचर ने ये पूछा आ कर रात और दिन होते हैं क्यूँकर अपनी सीट पे पप्पू उट्ठा और फ़र्राटे से यूँ बोला ये सूरज इक रौशन शय है नारंगी सी गोल ज़मीं है धरती अपनी कील पे चक्कर खाती रहती है हर दम सर चौबीस घंटों में इक फेरा करती है ये धरती पूरा चक्कर खाने में जो हिस्सा सूरज की जानिब है रहता उस हिस्सा में दिन रहता है 'नावक' ने यूँ ही लिक्खा है इस की उल्टी सम्त अंधेरा आधे हिस्से में है रहता या'नी रात वहाँ रहती है मुझ को तो मा'लूम यही है