रात की आँख में एक ख़ंजर उगा रात काली है उजली है पीली है नीली है या फिर रात का कोई रंग ही नहीं है मगर जो भी हो रात काली है ऐसा समझ लीजिए रात काली है बहती है जैसे नदी अंधे पानी की कोहरे की या धुँद की रात की आँख में एक ख़ंजर उगा एक वहशी परिंदे ने ख़ंजर का बोसा लिया नोक-ए-ख़ंजर परिंदे की आँखों में साज़िश का नशा मचा ख़्वाब की धुँद अंधी नदी ज़र्द शो'ला बनी और बहती रही फिर कहीं ज़र्द रंगों के पत्थर की बारिश पराए शहर में रवाना हुई राहतों के मकाँ के मुंडेरों से राहत के कव्वे उठे शोर की कंकरी से कुएँ भी भरे आइना आइना सी फ़ज़ा भी जली एक क़िस्से की एँटी पुरानी नई फिर कहीं बूम का आशियाना बनी रात की आँख में एक ख़ंजर उगा