वहाँ भाव अच्छा मिला था कोई चार छे लेंथ की बात भी तो नहीं थी बस आख़िर में गर्दन से गर्दन ही का फ़ासला रह गया था वो जॉकी कि जिस पर भरोसा था मुझ को उसी ने कहीं नहीं ऐसा मुमकिन नहीं है तो फिर हसब और नसब शजरा-ए-ख़ानदान सभी देख डाला था मैं ने वो रुस्तम का बेटा था सोहराब ही था वो जिस बेंच में था वहाँ कोई उस का मुक़ाबिल नहीं था वो चीते की मानिंद उड़ता था और वज़न भी पीठ पर उस की इतना नहीं था कि वो हार जाता ट्रेनर भी माहिर था उस का फिर उस के वो सब कारनामे इधर उस की फोटो निकलने को थी और उधर दिल की रफ़्तार कोई चार छे लेंथ की बात भी तो नहीं थी वहाँ सिर्फ़ गर्दन से गर्दन ही का फ़ासला रह गया था चलो मान लेते हैं फिर आज अपने सितारे ही अच्छे नहीं थे चलो ऑटो रिक्शा से चलते हैं सर्किल नहीं यार अब इतने पैसे कहाँ हैं