दर्द जिस दिल में हो उस दिल की दवा बन जाऊँ कोई बीमार अगर हो तो शिफ़ा बन जाऊँ दुख में हिलते हुए लब की मैं दुआ बन जाऊँ उफ़ वो आँखें कि हैं बीनाई से महरूम कहीं रौशनी जिन में नहीं नूर जिन आँखों में नहीं मैं इन आँखों के लिए नूर-ए-ज़िया बन जाऊँ हाए वो दिल जो तड़पता हुआ घर से निकले उफ़ वो आँसू जो किसी दीदा-ए-तर से निकले मैं उस आँसू के सुखाने को हवा बन जाऊँ दूर मंज़िल से अगर राह में थक जाए कोई जब मुसाफ़िर कहीं रस्ते से भटक जाए कोई ख़िज़्र का काम करूँ राह-नुमा बन जाऊँ उम्र के बोझ से जो लोग दबे जाते हैं ना-तवानी से जो हर रोज़ झुके जाते हैं उन ज़ईफ़ों के सहारे को असा बन जाऊँ ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ का हर सम्त में चर्चा कर दूँ मादर-ए-हिन्द को जन्नत का नमूना कर दूँ घर करे दिल में जो 'अफ़सर' वो सदा बन जाऊँ