आज मैं दूर बहुत दूर निकल आया हूँ बे-तलब तग-ओ-दौ दिल में काविश न तलाश न कोई ख़्वाहिश मख़्फ़ी न तमन्ना-ए-मआ'श हवस-ए-ख़ाम न सौदा-ए-तमाम यूँही चलता हुआ चलता हुआ आ पहुँचा हूँ पै-ब-पै गाम-ब-गाम किस क़दर दूर निकल आया हूँ उस से पहले भी चला हूँ मैं नई राहों पर शाह-राहों से परे ख़ार-ज़ारों में घिसटती हुई इक सुर्ख़ लकीर इक सिसकती हुई दिल-दोज़ नफ़ीर सरसराते हुए मल्बूस महकती हुई साँस लज़्ज़त-ओ-कर्ब का मद्धम बम-ओ-ज़ेर आज लेकिन मैं बहुत दूर निकल आया हूँ और इक शाम सर-ए-राहगुज़ार वो मिरी लग़्ज़िश-ए-पा मेरी वो बे-राह-रवी ख़ुद-फ़रामोश सुबुक-दोश-ए-अमल अपने अज्दाद के ना-कर्दा गुनाहों की उक़ूबत से बरी इक हिरन चौकड़ी भरता हुआ ख़ामोश-ख़िराम शाम के वक़्त सर-ए-राहगुज़ार मैं बहुत दूर भटक निकला था आज लेकिन मैं बहुत दूर निकल आया हूँ आप से आप बहुत दूर बहुत दूर निकल आया हूँ शाह-राहों से परे दूर गुज़रगाहों से बे-तलब बे-तग-ओ-दौ ख़ानक़ाहों से अलग दौर सनम-ख़ानों से हवस-ए-ख़ाम न सौदा-ए-तमाम यूँही चलता हुआ चलता हुआ आ पहुँचा हूँ पै-ब-पै गाम-ब-गाम किस क़दर दूर बहुत दूर निकल आया हूँ