वाईपर By Nazm << राह-रौ एक नज़्म लिखना मुश्किल है >> क्या ग़ज़ब की बारिश है आँखें सूजने आईं काश कोई वाईपर चलती कार से ले कर मेरे उन पपोटों पर जोड़ दे सफ़ाई से पुतलियों के शीशों को धुँद से बचाना है Share on: