नाच हाँ नाच कि हर शोरिश-ओ-हंगामा पर फैल जाए तिरी झन-झन का हसीं पैराहन नाच हाँ नाच कि सीने में तिरे एक मोती की तरह राज़ ज़माने का सिमट कर रह जाए बाज़ुओं को कभी होने दे दराज़ जम्अ करने दे ख़द-ओ-ख़ाल कभी अपनी हसीं आँखों को फ़र्श-ए-आवाज़ पे रख अपने पुर-असरार क़दम और चमकते हुए संगीत का जादू पी जा नाच सद-नश्शा-ओ-शादाबी से नाचती जा इसी मस्ती में कि तू एक कँवल बन जाए और तुझ को किसी तालाब के सीने में उतार आएँ हम भूत आ कर तिरी रंगत में बसेरा कर लें और हम बूढ़े दरख़्तों की कुहन-साल लटकती हुई शाख़ों से लिपट कर रोएँ साल-हा-साल लिपट कर रोएँ