उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है वहाँ रंगीनियाँ कोहसार के दामन में सोती हैं गुलों की निकहतें हर चार-सू आवारा होती हैं वहाँ नग़्मे सबा की नर्म-रौ मौजों में बहते हैं वहाँ आब-ए-रवाँ में मस्तियों के रक़्स रहते हैं वहाँ है एक दुनिया-ए-तरन्नुम आबशारों में वहाँ तक़्सीम होता है तबस्सुम लाला-ज़ारों में सुनहरी चाँद की किरनें वहाँ रातों को आती हैं वहाँ परियाँ मोहब्बत के ख़ुदा के गीत गाती हैं कनार-ए-आब-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बाहम सैर करते हैं गई-गुज़री ग़लत-फ़हमी का ज़िक्र-ए-ख़ैर करते हैं वहाँ के रहने वालों को गुनह करना नहीं आता ज़लील ओ मुब्तज़िल जज़्बात से डरना नहीं आता वहाँ अहल-ए-मोहब्बत का न कोई नाम धरता है वहाँ अहल-ए-मोहब्बत पर न कोई रश्क करता है मोहब्बत करने वालों को वहाँ रुस्वा नहीं करते मोहब्बत करने वालों का वहाँ चर्चा नहीं करते हम अक्सर सोचते हैं तंग आ कर कहीं चल दें मिरी जाँ! ऐ मिरे ख़्वाबों की दुनिया चल वहीं चल दें उफ़ुक़ के उस तरफ़ कहते हैं इक रंगीन वादी है