राशिदा-बाजी ने चुप से मुँह पर मिरे एक थप्पड़ जो मारा तो मैं हँस पड़ी दे के फिर एक घूँसा उन्हों ने कहा कान खींचूँ तुम्हारा तो मैं हँस पड़ी सब दलीलें जो उन की थीं माक़ूल थीं और मुझे पीटने में वो मशग़ूल थीं भूकी इक बकरी चुपके से जब चर गई आ के उन का ग़रारा तो मैं हँस पड़ी उन का बुर्क़ा बंदरिया को पहना दिया पर्स बंदर के हाथों में पकड़ा दिया जब वो ये कह के घबरा के रोने लगीं हाए बुर्क़ा हमारा तो मैं हँस पड़ी खा गई ईद की वो सिवय्याँ मिरी मुझ से बोलीं कि खा ले तू बय्याँ मिरी मारे ग़ुस्से के झट आस्तीनों को जब बाज़ूओं से उतारा तो मैं हँस पड़ी राशिदा-बाजी सुन लो नमाज़ी भी हैं वो मुजाहिद भी हैं और ग़ाज़ी भी हैं बाँध कर सर पे पग्गड़ उन्हों ने जूँही दुश्मनों को पुकारा तो मैं हँस पड़ी