रहगुज़र पर शोर-ओ-ग़ुल का सैल है बह रहा है ख़ुश्क तिनके की तरह ये जहान-ए-रंग-ओ-बू घूमते पहियों धड़कती गाड़ियों की हिचकियाँ दास्ताँ-दर-दास्ताँ उलझी हुई हैं चार-सू दर्द से सहमे हुए ख़्वाबों के लाखों क़ाफ़िले गामज़न हैं सू-ए-हसरत हौसले थामे हुए मैं भी उन में तुम भी इन में सारी दुनिया उन में है ख़ामुशी भी नग़्मगी भी अश्क-ओ-ख़ूँ भी उन में है कुछ निगाहें अर्श पर हैं कुछ निगाहें फ़र्श पर वक़्त आँधी की तरह कर रहा है तेज़-तर इस सैल को हम कहाँ हैं कौन सी मंज़िल पे हैं कोई बतलाओ कोई आवाज़ दो कोई बतलाओ कोई आवाज़ दो