मैं हूँ मैं वो जिस की आँखों में जीते जागते दर्द हैं दर्द कि जिन की हम-राही में दिल रौशन है दिल जिस से मैं ने इक दिन इक अहद किया था अहद कि दोनों एक ही आग में जलते रहेंगे आग कि जिस में जल कर जिस्म हुआ ख़ाकिस्तर जिस्म कि जिस के कच्चे ज़ख़्म बहुत दुखते थे ज़ख़्म कि जिन का मरहम वक़्त के पास नहीं है वक़्त कि जिस की ज़द में सारे सय्यारे हैं सय्यारे जो क़ाएम हैं अपनी ही कशिश पर और कशिश के ताने-बाने टूट चले हैं कौन तमाशाई है? मैं हू... और तमाशा मैं हूँ मैं!