रौशनी के ख़ुदा By Nazm << सख़ावत का फ़रिश्ता मशीन >> ये जो दीवारें मैं ने गिरा दी हैं जो हाथ ज़ख़्मी किए हैं तुम सोचते हो कि सब रौशनी देखने के लिए था रौशनी के ख़ुदा मैं ने चाहा था सूरज मुझे देख ले Share on: