रौशनियों का शहर बसेगा By Nazm << सावन की रुत आ पहुँची है गूँजते सन्नाटे >> उफ़ुक़ उफ़ुक़ साए सोचों के जिन में आग उगलते शो'ले तपता सहरा प्यासे अरमाँ आवारा बादल के टुकड़े बिन बरसे तहलील हो गए शोख़ उजाले कब का रस्ता भूल चुके हैं फिर भी इक उम्मीद है बाक़ी सहरा में भी चाँद उगेगा रौशनियों का शहर बसेगा Share on: