सावन की रुत आ पहुँची है भीग रहा है लम्हा लम्हा सोच शजर की शाख़ पे शब भर चीख़ेंगे ग़ुंचे अरमाँ के आँखों के पर्दे पर कितने रंग सजेंगे उन रंगों में भूला-बिसरा कोई लम्हा रंगीं लम्हा दिल में चुभेगा माज़ी की मेहराबें सारी गिर जाएँगी सावन की रुत आ पहुँची है