रेज़ा रेज़ा इकाइयाँ वो एक शय जिस से अपना रिश्ता जुड़ा हुआ है वो एक शय जो हमारी उस की हर एक की हड्डियों में पिन्हाँ लहू लहू में बसी हुई है वो शय अज़ल से जो अपनी मज्लिस में जी सकी है न टूटती है न मर रही है वो एक शय बे-पनाह सी है वो तंग-ओ-तारीक सी गुफाएँ अभी अभी एक लम्हे में जो सूनी सूनी सी हो गई थीं कुछ और तारीक हो गई हैं रेज़ा रेज़ा हो कर दसों दिशाओं में जी रही हैं