रेत पर सोया हुआ है आदमी उस में सिरे से कोई जुम्बिश ही नहीं मुझे हौल होता है मैं उस के पास जाता हूँ वहाँ रेत का एक ढेर होता है मैं उस ढेर को हाथ से छूता हूँ मेरे पंजे का निशान रेत पर बन जाता है फिर ये निशान पानी से निकली हुई मछली की तरह तड़पने लगता है और कुछ देर बाद साकित हो जाता है मेरे हाथ से चिपकी रेत जब मेरे साथ साथ चलती रही है मैं ने उसे कई बार हाथ से झाड़ना चाहा बार बार हाथ को पानी से धोया भी लेकिन रेत हाथ से छूटती ही नहीं राह चलते हुए मैं अपना हाथ जेब मैं छुपा कर चलता हूँ लेकिन मुसाफ़ह करने के लिए तो हाथ जेब से निकालना ही पड़ता है मुझ से मुसाफ़ह करने के बाद कोई आदमी पहले जैसा नहीं रहता कुछ दूर जा कर वो अपने हाथ से लगी रेत को झाड़ने की कोशिश करता है और रेत के ढेर में तब्दील हो जाता है हर गली और मोहल्ले में हर घर की दहलीज़ पर आप को रेत के ये ढेर दिखाई देंगे उन पर मेरी उँगलियों के निशान भी मिलेंगे ख़ुद मेरी पीठ पर भी ऐसा ही एक निशान है एक दिन ये सारे ढेर यकजा कर दिए जाएँगे एक बड़ा सा ढेर बना दिया जाएगा ये सारा काम एक शख़्स तन-ए-तन्हा करेगा फिर वो ढेर पर बने उस निशान को उठा कर अपनी जेब में रख लेगा